कोई कार्य सोच कर व्यक्ति को टारगेट करके नहीं करना चाहिए या फिर किसी दूसरे व्यक्ति से तुलना करके|
अगर आप इस संसार में है तो भगवान फिर बनाने वाले ने आपको यूनिक एक ही बनाया जो आपके पास है वह भी आपके ही पास यूनिक
है आप जैसा इस संसार में कोई भी व्यक्ति नहीं है तो आप दूसरों से तुलना करके अपने आप का अपमान करते हैं और आप हर पल अपने
आपका अपमान करोगे तो एक समय आपकी बुद्धि शरीर आपका साथ देना बंद कर देगा यह ऐसा ही है कि अगर हम किसी दूसरे व्यक्ति
का हर दिन अपमान करें तो वह व्यक्ति आपसे दूर हो जाएगा और आपका साथ देना बंद कर देगा|
दूसरा नुकसान यह है कि जब आप कोई कार्य या फिर किसी दूसरे को टारगेट करते हैं तो आप हमेशा उससे नीचे ही रहते हैं और हमेशा
उससे छोटे होते हैं और अपनी पूर्ण क्षमता पूर्ण शक्ति से कार्य नहीं करते हैं हो सकता है कि आप में उस व्यक्ति से कई गुना ज्यादा आप में
शक्ति हो, हो सकता है कि आप उस व्यक्ति से कहीं ज्यादा शक्तिशाली, प्रतिभाशाली हो|
तो मैं यही कहना चाहूंगा कि अगर आपके प्रतिस्पर्धा करना है तो अपने आप से करो जिससे आप अपने आपको हर दिन बेहतर बनाते हैं
और हर दिन आप अपने आप का new version, नेक्स्ट वर्जन बना पाते हैं और आप हर दिन महान प्रतिभाशाली, बुद्धिमान व
सम्माननीय व्यक्ति बन जाते हैं|
मैं महाभारत के ग्रंथ से एक उदाहरण लेना चाहूंगा अर्जुन व कर्ण का|
कर्ण श्रेष्ठ था और अर्जुन उत्तम था|
यहां पर बताना चाहूंगा कि श्रेष्ठ की बात करते हैं तो आप किसी से तुलना करते हैं और बोलते हैं कि मैं उस व्यक्ति से श्रेष्ठ हूँ , महाभारत में
कर्ण हमेशा जिंदगी भर अर्जुन को नीचा दिखाना और अर्जुन से श्रेष्ठ बनने के लिए मेहनत कार्य करता रहा और अंततः अर्जुन से श्रेष्ठ बन भी
गया पर कर्ण कभी भी उत्तम नहीं बन पाया बस श्रेष्ठ बनकर रह गया|
जबकि अर्जुन एक उत्तम व्यक्ति है क्योंकि उसने अपनी जिंदगी किसी भी व्यक्ति से तुलना करके नहीं जी और वह अपने आप को महान
बुद्धिमानी, शक्तिशाली बनाने लगे और उसने किसी एक व्यक्ति को टारगेट करके नहीं जिया और अपना ही एक उत्तम version बन गया|
उत्तम का अर्थ होता है कि अपने आप का सर्वश्रेष्ठ ना कि किसी से तुलना करके| उत्तम का कोई विलोम शब्द भी नहीं होता है मतलब उत्तम
का कभी भी कुछ भी उल्टा नहीं हो सकता|
अंततः हमेशा आप अपने आप को उत्तम बनाने के लिए कार्य करें ना कि किसी से तुलना और प्रतिस्पर्धा करके|